ईद-उल-जुहा यानी बकरीद इस्लाम धर्म का दूसरा बड़ा त्योहार है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार बकरीद 12वें महीने की 10 तारीख को मनाया जाता है। रमजान का महीना खत्म होने के 70 दिन बाद बकरीद मनाई जाती है। इस दिन मुसलमान नमाज पढ़ने के बाद जानवर की कुर्बानी देते हैं। भारत में इस साल बकरीद बुधवार 21 जुलाई को मनाई जाएगी।
अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी
मुस्लिम अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी देते हैं। इस्लाम में सिर्फ हलाल के तरीके से कमाए हुए पैसों से कुर्बानी जायज मानी जाती है। बकरा, भेड़ या ऊंट जैसे किसी जानवर की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी के वक्त इस बात का खास ध्यान रखना होता है कि जानवर को चोट ना लगी हो या वो बीमार न हो।
इस्लाम में कुर्बानी का बड़ा महत्व
इस्लाम में कुर्बानी का बड़ा महत्व माना जाता है। कुरान में कहा गया है कि एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेने की सोची। उन्होंने हजरत इब्राहिम को हुक्म दिया कि वह अपनी सबसे प्यारी चीज को उन्हें कुर्बान कर दें। हजरत इब्राहिम को उनके बेटे हजरत ईस्माइल सबसे ज्यादा प्यारे थे क्योंकि वह उन्हें 80 साल की उम्र में नसीब हुए थे। हजरत इब्राहिम के लिए अपने बेटे की कुर्बानी देना बेहद मुश्किल काम था। लेकिन उन्होने अल्लाह के हुक्म और बेटे की मुहब्बत में से अल्लाह के हुक्म को चुनते हुए बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया।
अल्लाह का करिश्मा
हजरत इब्राहिम ने अल्लाह का नाम लेते हुए अपने बेटे के गले पर छुरी चला दी। जब उन्होंने अपनी आंख खोली तो देखा कि उनका बेटा बगल में जिंदा खड़ा है और उसकी जगह बकरे जैसी शक्ल का जानवर कटा हुआ लेटा है। जिसके बाद अल्लाह की राह में कुर्बानी देने की शुरुआत हुई।